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ज़िन्दगी में कुछ भी कभी हरपल नहीं रहता
जो आज साथ होता है तुम्हारे वो कल नहीं रहता
मैं फ़िज़ूल रोया करता था लम्हों पे दशको पे
समझ आया अब की वक़्त खुद भी सदा प्रबल नहीं रहता
मरते हैं इसके भी पल जो बहते हैं इसकी धाराओ में
सदा को ठहरा हुआ कोई भी इसका पल नहीं रहता
सिर्फ तू भंवर में है ये सोचना सरासर भूल है
ये झरना है, इस अहद में अब ये कल-कल नहीं बहता
इस दूध की धारा को मैंने पूजा भी दिए भी सिराये
पर जब से सागर में मिला फिर वो गंगाजल नहीं रहता
कितना लालची हूँ की जिसके सजदे किये नवाज़ा भी
वो जब से खारा हुआ ठोकरों के भी काबिल नहीं रहता
तू हाथों की लकीरों पे चला तो नदी जैसा भटकता रहा
तूने खुद को कभी नहीं खोजा तभी तू सफल नहीं रहता
और तू मुझे मसीहा मत समझ मैं खुद विफल हूँ हालातों से
हाँ मगर होंसला अब नहीं हरा वर्ना ये ग़ज़ल नहीं कहता
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